Bible Books

:

1. {यीशु मसीह का पहाड़ी उपदेश} PS वह भीड़ को देखकर, पहाड़ पर चढ़ गया; और जब बैठ गया तो उसके चेले उसके पास आए।
2. और वह अपना मुँह खोलकर उन्हें यह उपदेश देने लगा :
3. {धन्य वचन} PS “धन्य हैं वे, जो मन के दीन हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है।
4. “धन्य हैं वे, जो शोक करते हैं, क्योंकि वे शान्ति पाएँगे।
5. “धन्य हैं वे, जो नम्र हैं, क्योंकि वे पृथ्वी के अधिकारी होंगे। (भज. 37:11)
6. “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के भूखे और प्यासे हैं, क्योंकि वे तृप्त किये जाएँगे।
7. “धन्य हैं वे, जो दयावन्त हैं, क्योंकि उन पर दया की जाएगी।
8. “धन्य हैं वे, जिनके मन शुद्ध हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर को देखेंगे।
9. “धन्य हैं वे, जो मेल करवानेवाले हैं, क्योंकि वे परमेश्‍वर के पुत्र कहलाएँगे।
10. “धन्य हैं वे, जो धार्मिकता के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है। PEPS
11. “धन्य हो तुम, जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निन्दा करें और सताएँ और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बात कहें।
12. आनन्दित और मगन होना क्योंकि तुम्हारे लिये स्वर्ग में बड़ा प्रतिफल है। इसलिए कि उन्होंने उन भविष्यद्वक्ताओं को जो तुम से पहले थे इसी रीति से सताया था। PS
13. {नमक और ज्योति से तुलना} PS “तुम पृथ्वी के नमक हो; परन्तु यदि नमक का स्वाद बिगड़ जाए, तो वह फिर किस वस्तु से नमकीन किया जाएगा? फिर वह किसी काम का नहीं, केवल इसके कि बाहर फेंका जाए और मनुष्यों के पैरों तले रौंदा जाए।
14. तुम जगत की ज्योति हो। जो नगर पहाड़ पर बसा हुआ है वह छिप नहीं सकता।
15. और लोग दीया जलाकर पैमाने के नीचे नहीं परन्तु दीवट पर रखते हैं, तब उससे घर के सब लोगों को प्रकाश पहुँचता है।
16. उसी प्रकार तुम्हारा उजियाला मनुष्यों के सामने चमके कि वे तुम्हारे भले कामों को देखकर तुम्हारे पिता की, जो स्वर्ग में हैं, बड़ाई करें। PS
17. {व्यवस्था का पूरा होना} PS “यह समझो, कि मैं व्यवस्था* या भविष्यद्वक्ताओं की शिक्षाओं को लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं, परन्तु पूरा करने आया हूँ। (रोम. 10:4)
18. क्योंकि मैं तुम से सच कहता हूँ, कि जब तक आकाश और पृथ्वी टल जाएँ, तब तक व्यवस्था से एक मात्रा या बिन्दु भी बिना पूरा हुए नहीं टलेगा।
19. इसलिए जो कोई इन छोटी से छोटी आज्ञाओं में से किसी एक को तोड़े, और वैसा ही लोगों को सिखाए, वह स्वर्ग के राज्य में सबसे छोटा कहलाएगा; परन्तु जो कोई उनका पालन करेगा और उन्हें सिखाएगा, वही स्वर्ग के राज्य में महान कहलाएगा।
20. क्योंकि मैं तुम से कहता हूँ, कि यदि तुम्हारी धार्मिकता शास्त्रियों और फरीसियों की धार्मिकता से बढ़कर हो, तो तुम स्वर्ग के राज्य में कभी प्रवेश करने पाओगे। PS
21. {हत्या और क्रोध का दण्ड} PS “तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था कि ‘हत्या करना’, और ‘जो कोई हत्या करेगा वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा।’ (निर्ग. 20:13)
22. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई अपने भाई पर क्रोध करेगा, वह कचहरी में दण्ड के योग्य होगा और जो कोई अपने भाई को निकम्मा* कहेगा वह महासभा में दण्ड के योग्य होगा; और जो कोई कहे ‘अरे मूर्ख’ वह नरक की आग के दण्ड के योग्य होगा।
23. इसलिए यदि तू अपनी भेंट वेदी पर लाए, और वहाँ तू स्मरण करे, कि मेरे भाई के मन में मेरी ओर से कुछ विरोध है,
24. तो अपनी भेंट वहीं वेदी के सामने छोड़ दे, और जाकर पहले अपने भाई से मेल मिलाप कर, और तब आकर अपनी भेंट चढ़ा।
25. जब तक तू अपने मुद्दई के साथ मार्ग में हैं, उससे झटपट मेल मिलाप कर ले कहीं ऐसा हो कि मुद्दई तुझे न्यायाधीश को सौंपे, और न्यायाधीश तुझे सिपाही को सौंप दे और तू बन्दीगृह में डाल दिया जाए।
26. मैं तुम से सच कहता हूँ कि जब तक तू पाई-पाई चुका दे तब तक वहाँ से छूटने पाएगा। PS
27. {व्यभिचार के विषय में शिक्षा} PS “तुम सुन चुके हो कि कहा गया था, ‘व्यभिचार करना।’ (व्य. 5:18, निर्ग. 20:14)
28. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि जो कोई किसी स्त्री पर कुदृष्टि डाले वह अपने मन में उससे व्यभिचार कर चुका।
29. यदि तेरी दाहिनी आँख तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसे निकालकर अपने पास से फेंक दे; क्योंकि तेरे लिये यही भला है कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में डाला जाए।
30. और यदि तेरा दाहिना हाथ तुझे ठोकर खिलाएँ, तो उसको काटकर अपने पास से फेंक दे, क्योंकि तेरे लिये यही भला है, कि तेरे अंगों में से एक नाश हो जाए और तेरा सारा शरीर नरक में डाला जाए। PS
31. {तलाक के विषय में शिक्षा} PS “यह भी कहा गया था, ‘जो कोई अपनी पत्‍नी को त्याग दे, तो उसे त्यागपत्र दे।’ (व्य. 24:1-14)
32. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ कि जो कोई अपनी पत्‍नी को व्यभिचार के सिवा किसी और कारण से तलाक दे, तो वह उससे व्यभिचार करवाता है; और जो कोई उस त्यागी हुई से विवाह करे, वह व्यभिचार करता है। PS
33. {शपथ खाना} PS “फिर तुम सुन चुके हो, कि पूर्वकाल के लोगों से कहा गया था, ‘झूठी शपथ खाना, परन्तु परमेश्‍वर के लिये अपनी शपथ को पूरी करना।’ (व्य. 23:21)
34. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि कभी शपथ खाना; तो स्वर्ग की, क्योंकि वह परमेश्‍वर का सिंहासन है। (यशा. 66:1)
35. धरती की, क्योंकि वह उसके पाँवों की चौकी है; यरूशलेम की, क्योंकि वह महाराजा का नगर है। (यशा. 66:1)
36. अपने सिर की भी शपथ खाना क्योंकि तू एक बाल को भी उजला, काला कर सकता है।
37. परन्तु तुम्हारी बात हाँ की हाँ, या नहीं की नहीं हो; क्योंकि जो कुछ इससे अधिक होता है वह बुराई से होता है। PS
38. {प्रतिशोध ना लेना} PS “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था, कि आँख के बदले आँख, और दाँत के बदले दाँत। (व्य. 19:21)
39. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि बुरे का सामना करना; परन्तु जो कोई तेरे दाहिने गाल पर थप्पड़ मारे, उसकी ओर दूसरा भी फेर दे।
40. और यदि कोई तुझ पर मुकद्दमा करके तेरा कुर्ता* लेना चाहे, तो उसे अंगरखा* भी ले लेने दे।
41. और जो कोई तुझे कोस भर बेगार में ले जाए तो उसके साथ दो कोस चला जा।
42. जो कोई तुझ से माँगे, उसे दे; और जो तुझ से उधार लेना चाहे, उससे मुँह मोड़। PEPS
43. “तुम सुन चुके हो, कि कहा गया था; कि अपने पड़ोसी से प्रेम रखना, और अपने बैरी से बैर। (लैव्य. 19:18)
44. परन्तु मैं तुम से यह कहता हूँ, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सतानेवालों के लिये प्रार्थना करो। (रोम. 12:14)
45. जिससे तुम अपने स्वर्गीय पिता की सन्तान ठहरोगे क्योंकि वह भलों और बुरों दोनों पर अपना सूर्य उदय करता है, और धर्मी और अधर्मी पर मेंह बरसाता है।
46. क्योंकि यदि तुम अपने प्रेम रखनेवालों ही से प्रेम रखो, तो तुम्हारे लिये क्या लाभ होगा? क्या चुंगी लेनेवाले भी ऐसा ही नहीं करते? PEPS
47. “और यदि तुम केवल अपने भाइयों को ही नमस्कार करो, तो कौन सा बड़ा काम करते हो? क्या अन्यजाति भी ऐसा नहीं करते?
48. इसलिए चाहिये कि तुम सिद्ध बनो, जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है। (लैव्य. 19:2) PE
Copy Rights © 2023: biblelanguage.in; This is the Non-Profitable Bible Word analytical Website, Mainly for the Indian Languages. :: About Us .::. Contact Us
×

Alert

×