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Ezekiel 1 (ERVHI) Easy to Read Version - Hindi

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4 मैंने (यहेजकेल) एक धूल भरी आंधी उत्तर से आती देखी। यह एक विशाल बादल था और उसमें से आग चमक रही थी। इसके चारों ओर प्रकाश जगमगा रहा था। यह आग में चमकते तप्त धातु सा दिखता था।
5 बादल के भीतर चार प्राणी थे। वे मनुष्यों की तरह दिखते थे।
6 किन्तु हर एक प्राणी के चार मुख और चार पंख थे।
7 उनके पैर सीधे थे। उनके पैर बछड़े के पैर जैसे दिखते थे और वे झलकाये हुए पीतल की तरह चमकते थे।
8 उनके पंखों के नीचे मानवी हाथ थे। वहाँ चार प्राणी थे और हर एक प्राणी के चार मुख और चार पंख थे।
9 उनके पंख एक दूसरे को छूते थे। जब वे चलते थे, मुड़ते नहीं थे। वे उसी दिशा में चलते थे जिसे देख रहे थे।
10 हर एक प्राणी के चार मुख थे। सामने की ओर उनका चेहरा मनुष्य का था। दायीं ओर सिंह का चेहरा था। बांयी ओर बैल का चेहरा था और पीछे की ओर उकाब का चेहरा था।
11 प्राणियों के पंख उनके ऊपर फैले हुये थे। वे दो पंखों से अपने पास के प्राणी के दो पंखों को स्पर्श किये थे तथा दो को अपने शरीर को ढकने के लिये उपयोग में लिया था।
12 वे प्राणी जब चलते थे तो मुड़ते नहीं थे। वे उसी दिशा में चलते थे जिसे वे देख रहे थे। वे वहीं जाते थे जहाँ आत्मा उन्हें ले जाती थी।
13 हर एक प्राणी इस प्रकार दिखता था। उन प्राणियों के बीच के स्थान में जलती हुई कोयले की आग सी दिख रही थी। यह आग छोटे-छोटे मशालों की तरह उन प्राणियों के बीच चल रही थी। आग बड़े प्रकाश के साथ चमक रही थी और बिजली की तरह कौंध रही थी!
14 वे प्राणी बिजली की तरह तेजी से पीछे को और आगे को दौड़ते थे!
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17 वे चक्र किसी भी दिशा में घूम सकते थे। किन्तु वे प्राणी जब चलते थे तो घूम नहीं सकते थे।
18 उन चक्रों के घेरे ऊँचे और डरावने थे! उन चारों चक्रों के घेरे में आँखें ही आँखें थी।
19 चक्र सदा प्राणियों के साथ चलते थे। यदि प्राणी ऊपर हवा में जाते तो चक्र भी उनके साथ जाते।
20 वे वहीं जाते, जहाँ “आत्मा” उन्हें ले जाना चाहती और चक्र उनके साथ जाते थे। क्यों क्योंकि प्राणियों की “आत्मा” (शक्ति) चक्र में थी।
21 इसलिये यदि प्राणी चलते थे तो चक्र भी चलते थे। यदि प्राणी रूक जाते थे तो चक्र भी रूक जाते थे। यदि चक्र हवा में ऊपर जाते तो प्राणी उनके साथ जाते थे। क्यों क्योंकि आत्मा चक्र में थी।
22 प्राणियों के सिर के ऊपर एक आश्चर्यजनक चीज थी। यह एक उल्टे कटोरे की सी थी। कटोरा बर्फ की तरह स्वच्छ था!
23 इस कटोरे के नीचे हर एक प्राणी के सीधे पंख थे जो दूसरे प्राणी तक पहुँच रहे थे। दो पंख उसके शरीर के एक भाग को ढकते थे और अन्य दो दूसरे भाग को।
24 जब कभी वे प्राणी चलते थे, उनके पंख बड़ी तेज ध्वनि करते थे। वह ध्वनि समुद्र के गर्जन जैसी उत्पन्न होती थी। वह सर्वशक्तिमान परमेश्वर के समीप से निकलने के वाणी के समान थी। वह किसी सेना के जन-समूह के शोर की तरह थी। जब वे प्राणी चलना बन्द करते थे तो वे अपने पंखो को अपनी बगल में समेट लेते थे।
25 उन प्राणियों ने चलना बन्द किया और अपने पंखों को समेटा और वहाँ फिर भीषण आवाज हुआ। वह आवाज उस कटोरे से हुआ जो उनके सिर के ऊपर था।
26 उस कटोरे के ऊपर वहाँ कुछ था जो एक सिंहासन की तरह दिखता था। यह नीलमणि की तरह नीला था। वहाँ कोई था जो उस सिंहासन पर बैठा एक मनुष्य की तरह दिख रहा था!
27 मैंने उसे उसकी कमर से ऊपर देखा। वह तप्त-धातु कि तरह दिखा। उसके चारों ओर ज्वाला सी फूट रही थी! मैंने उसे उसकी कमर के नीचे देखा। यह आग की तरह दिखा जो उसके चारों ओर जगमगा रही थी।
28 उसके चारों ओर चमकता प्रकाश बादलों में मेघ धनुष सा था। यह यहोवा की महिमा सा दिख रहा था। जैसे ही मैने वह देखा, मैं धरती पर गिर गया। मैंने धरती पर अपना माथा टेका। तब मैंने एक आवाज सम्बोधित करते हुए सुनी।
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