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1. तब अय्यूब ने कहा,
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1. But Job H347 answered H6030 and said H559 ,
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2. निर्बल जन की तू ने क्या ही बड़ी सहायता की, और जिसकी बांह में सामर्थ्य नहीं, उसको तू ने कैसे सम्भाला है?
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2. How H4100 hast thou helped H5826 him that is without H3808 power H3581 ? how savest H3467 thou the arm H2220 that hath no H3808 strength H5797 ?
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3. निर्बुद्धि मनुष्य को तू ने क्या ही अच्छी सम्मति दी, और अपनी खरी बुद्धि कैसी भली भांति प्रगट की है?
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3. How H4100 hast thou counseled H3289 him that hath no H3808 wisdom H2451 ? and how hast thou plentifully H7230 declared H3045 the thing H8454 as it is?
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4. तू ने किसके हित के लिये बातें कही? और किसके मन की बातें तेरे मुंह से निकलीं?
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4. To H854 whom H4310 hast thou uttered H5046 words H4405 ? and whose H4310 spirit H5397 came H3318 from H4480 thee?
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5. बहुत दिन के मरे हुए लोग भी जलनिधि और उसके निवासियों के तले तड़पते हैं।
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5. Dead H7496 things are formed H2342 from under H4480 H8478 the waters H4325 , and the inhabitants H7931 thereof.
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6. अधोलोक उसके साम्हने उघड़ा रहता है, और विनाश का स्थान ढंप नहीं सकता।
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6. Hell H7585 is naked H6174 before H5048 him , and destruction H11 hath no H369 covering H3682 .
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7. वह उत्तर दिशा को निराधार फैलाए रहता है, और बिना टेक पृथ्वी को लटकाए रखता है।
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7. He stretcheth out H5186 the north H6828 over H5921 the empty place H8414 , and hangeth H8518 the earth H776 upon H5921 nothing H1099 .
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8. वह जल को अपनी काली घटाओं में बान्ध रखता, और बादल उसके बोझ से नहीं फटता।
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8. He bindeth up H6887 the waters H4325 in his thick clouds H5645 ; and the cloud H6051 is not rent H1234 H3808 under H8478 them.
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9. वह अपने सिंहासन के साम्हने बादल फैला कर उसको छिपाए रखता है।
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9. He holdeth back H270 the face H6440 of his throne H3678 , and spreadeth H6576 his cloud H6051 upon H5921 it.
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10. उजियाले और अन्धियारे के बीच जहां सिवाना बंधा है, वहां तक उसने जलनिधि का सिवाना ठहरा रखा है।
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10. He hath compassed H2328 H5921 the waters H6440 H4325 with bounds H2706 , until H5704 the day H216 and night H2822 come to an end H8503 .
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11. उसकी घुड़की से आकाश के खम्भे थरथरा कर चकित होते हैं।
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11. The pillars H5982 of heaven H8064 tremble H7322 and are astonished H8539 at his reproof H4480 H1606 .
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12. वह अपने बल से समुद्र को उछालता, और अपनी बुद्धि से घपण्ड को छेद देता है।
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12. He divideth H7280 the sea H3220 with his power H3581 , and by his understanding H8394 he smiteth through H4272 the proud H7293 .
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13. उसकी आत्मा से आकाशमण्डल स्वच्छ हो जाता है, वह अपने हाथ से वेग भागने वाले नाग को मार देता है।
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13. By his spirit H7307 he hath garnished H8235 the heavens H8064 ; his hand H3027 hath formed H2490 the crooked H1281 serpent H5175 .
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14. देखो, ये तो उसकी गति के किनारे ही हैं; और उसकी आहट फुसफुसाहट ही सी तो सुन पड़ती है, फिर उसके पराक्रम के गरजने का भेद कौन समझ सकता है?
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14. Lo H2005 , these H428 are parts H7098 of his ways H1870 : but how H4100 little H8102 a portion H1697 is heard H8085 of him? but the thunder H7482 of his power H1369 who H4310 can understand H995 ?
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