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1. फिर इस बात पर भी मेरा हृदय कांपता है, और अपने स्थान से उछल पड़ता है।
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1. At this H2063 also H637 my heart H3820 trembleth H2729 , and is moved H5425 out of his place H4480 H4725 .
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2. उसके बोलने का शब्द तो सुनो, और उस शब्द को जो उसके मुंह से निकलता है सुनो।
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2. Hear attentively H8085 H8085 the noise H7267 of his voice H6963 , and the sound H1899 that goeth out H3318 of his mouth H4480 H6310 .
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3. वह उसको सारे आकाश के तले, और अपनी बिजली को पृथ्वी की छोर तक भेजता है।
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3. He directeth H3474 it under H8478 the whole H3605 heaven H8064 , and his lightning H216 unto H5921 the ends H3671 of the earth H776 .
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4. उसके पीछे गरजने का शब्द होता है; वह अपने प्रतापी शब्द से गरजता है, और जब उसका शब्द सुनाईं देता है तब बिजली लगातार चमकने लगती है।
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4. After H310 it a voice H6963 roareth H7580 : he thundereth H7481 with the voice H6963 of his excellency H1347 ; and he will not H3808 stay H6117 them when H3588 his voice H6963 is heard H8085 .
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5. ईश्वर गरज कर अपना शब्द अद्भूत रीति से सुनाता है, और बड़े बड़े काम करता है जिन को हम नहीं समझते।
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5. God H410 thundereth H7481 marvelously H6381 with his voice H6963 ; great things H1419 doeth H6213 he , which we cannot H3808 comprehend H3045 .
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6. वह तो हिम से कहता है, पृथ्वी पर गिर, और इसी प्रकार मेंह को भी और मूसलाधार वर्षा को भी ऐसी ही आज्ञा देता है।
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6. For H3588 he saith H559 to the snow H7950 , Be H1933 thou on the earth H776 ; likewise to the small H4306 rain H1653 , and to the great H4306 rain H1653 of his strength H5797 .
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7. वह सब मनुष्यों के हाथ पर मुहर कर देता है, जिस से उसके बनाए हुए सब मनुष्य उसको पहचानें।
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7. He sealeth up H2856 the hand H3027 of every H3605 man H120 ; that all H3605 men H376 may know H3045 his work H4639 .
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8. तब वनपशु गुफाओं में घुस जाते, और अपनी अपनी मांदों में रहते हैं।
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8. Then the beasts H2416 go H935 into H1119 dens H695 , and remain H7931 in their places H4585 .
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9. दक्खिन दिशा से बवण्डर और उतरहिया से जाड़ा आता है।
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9. Out of H4480 the south H2315 cometh H935 the whirlwind H5492 : and cold H7135 out of the north H4480 H4215 .
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10. ईश्वर की श्वास की फूंक से बरफ पड़ता है, तब जलाशयों का पाट जम जाता है।
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10. By the breath H4480 H5397 of God H410 frost H7140 is given H5414 : and the breadth H7341 of the waters H4325 is straitened H4164 .
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11. फिर वह घटाओं को भाफ़ से लादता, और अपनी बिजली से भरे हुए उजियाले का बादल दूर तक फैलाता है।
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11. Also H637 by watering H7377 he wearieth H2959 the thick cloud H5645 : he scattereth H6327 his bright H216 cloud H6051 :
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12. वे उसकी बुद्धि की युक्ति से इधर उधर फिराए जाते हैं, इसलिये कि जो आज्ञा वह उन को दे, उसी को वे बसाई हुई पृथ्वी के ऊपर पूरी करें।
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12. And it H1931 is turned H2015 round about H4524 by his counsels H8458 : that they may do H6466 whatsoever H3605 H834 he commandeth H6680 them upon H5921 the face H6440 of the world H8398 in the earth H776 .
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13. चाहे ताड़ना देने के लिये, चाहे अपनी पृथ्वी की भलाई के लिये वा मनुष्यों पर करुणा करने के लिये वह उसे भेजे।
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13. He causeth it to come H4672 , whether H518 for correction H7626 , or H518 for his land H776 , or H518 for mercy H2617 .
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14. हे अय्यूब! इस पर कान लगा और सुन ले; चुपचाप खड़ा रह, और ईश्वर के आश्चर्यकर्मों का विचार कर।
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14. Hearken H238 unto this H2063 , O Job H347 : stand still H5975 , and consider H995 the wondrous H6381 works of God H410 .
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15. क्या तू जानता है, कि ईश्वर क्योंकर अपने बादलों को आज्ञा देता, और अपने बादल की बिजली को चमकाता है?
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15. Dost thou know H3045 when God H433 disposed H7760 H5921 them , and caused the light H216 of his cloud H6051 to shine H3313 ?
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16. क्या तू घटाओं का तौलना, वा सर्वज्ञानी के आश्चर्यकर्म जानता है?
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16. Dost thou know H3045 H5921 the balancings H4657 of the clouds H5645 , the wondrous works H4652 of him which is perfect H8549 in knowledge H1843 ?
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17. जब पृथ्वी पर दक्खिनी हवा ही के कारण से सन्नाटा रहता है तब तेरे वस्त्र क्यों गर्म हो जाते हैं?
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17. How H834 thy garments H899 are warm H2525 , when he quieteth H8252 the earth H776 by the south H4480 H1864 wind ?
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18. फिर क्या तू उसके साथ आकाशमण्डल को तान सकता है, जो ढाले हुए दर्पण के तुल्य दृढ़ है?
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18. Hast thou with H5973 him spread out H7554 the sky H7834 , which is strong H2389 , and as a molten H3332 looking glass H7209 ?
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19. तू हमें यह सिखा कि उस से क्या कहना चाहिये? क्योंकि हम अन्धियारे के कारण अपना व्याख्यान ठीक नहीं रच सकते।
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19. Teach H3045 us what H4100 we shall say H559 unto him; for we cannot H3808 order H6186 our speech by reason H4480 H6440 of darkness H2822 .
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20. क्या उसको बताया जाए कि मैं बोलना चाहता हूँ? क्या कोई अपना सत्यानाश चाहता है?
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20. Shall it be told H5608 him that H3588 I speak H1696 ? if H518 a man H376 speak H559 , surely H3588 he shall be swallowed up H1104 .
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21. अभी तो आकाशमण्डल में का बड़ा प्रकाश देखा नहीं जाता जब वायु चलकर उसको शुद्ध करती है।
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21. And now H6258 men see H7200 not H3808 the bright H925 light H216 which H1931 is in the clouds H7834 : but the wind H7307 passeth H5674 , and cleanseth H2891 them.
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22. उत्तर दिशा से सुनहली ज्योति आती है ईश्वर भययोग्य तेज से आभूषित है।
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22. Fair weather H2091 cometh H857 out of the north H4480 H6828 : with H5921 God H433 is terrible H3372 majesty H1935 .
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23. सर्वशक्तिमान जो अति सामथीं है, और जिसका भेद हम पा नहीं सकते, वह न्याय और पूर्ण धर्म को छोड़ अत्याचार नहीं कर सकता।
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23. Touching the Almighty H7706 , we cannot H3808 find him out H4672 : he is excellent H7689 in power H3581 , and in judgment H4941 , and in plenty H7230 of justice H6666 : he will not H3808 afflict H6031 .
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24. इसी कारण सज्जन उसका भय मानते हैं, और जो अपनी दृष्टि में बुद्धिमान हैं, उन पर वह दृष्टि नहीं करता।
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24. Men H376 do therefore H3651 fear H3372 him : he respecteth H7200 not H3808 any H3605 that are wise H2450 of heart H3820 .
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