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1. {सुबुद्धि की पुकार} PS क्या सुबुद्धि तुझको पुकारती नहीं है क्या समझबूझ ऊँची आवाज नहीं देती
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1. Doth not H3808 wisdom H2451 cry H7121 ? and understanding H8394 put forth H5414 her voice H6963 ?
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2. वह राह के किनारे ऊँचे स्थानों पर खड़ी रहती है जहाँ मार्ग मिलते हैं।
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2. She standeth H5324 in the top H7218 of high places H4791 , by H5921 the way H1870 in the places H1004 of the paths H5410 .
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3. वह नगर को जाने वाले द्वारों के सहारे उपर सिंह द्वार के ऊपर पुकार कर कहती है,
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3. She crieth H7442 at H3027 the gates H8179 , at the entry H6310 of the city H7176 , at the coming H3996 in at the doors H6607 .
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4. “हे लोगों, मैं तुमको पुकारती हूँ, मैं सारी मानव जाति हेतु आवाज़ उठाती हूँ।
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4. Unto H413 you , O men H376 , I call H7121 ; and my voice H6963 is to H413 the sons H1121 of man H120 .
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5. अरे भोले लोगों! दूर दृष्टि प्राप्त करो, तुम, जो मूर्ख बने हो, समझ बूझ अपनाओ।
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5. O ye simple H6612 , understand H995 wisdom H6195 : and , ye fools H3684 , be ye of an understanding H995 heart H3820 .
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6. सुनो! क्योंकि मेरे पास कहने को उत्तम बातें है, अपना मुख खोलती हूँ, जो कहने को उचित है।
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6. Hear H8085 ; for H3588 I will speak H1696 of excellent things H5057 ; and the opening H4669 of my lips H8193 shall be right things H4339 .
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7. मेरे मुख से तो वही निकलता है जो सत्य है, क्योंकि मेरे होंठों को दुष्टता से घृणा है।
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7. For H3588 my mouth H2441 shall speak H1897 truth H571 ; and wickedness H7562 is an abomination H8441 to my lips H8193 .
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8. मेरे मुख के सभी शब्द न्यायपूर्ण होते है कोई भी कुटिल, अथवा भ्रान्त नहीं है।
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8. All H3605 the words H561 of my mouth H6310 are in righteousness H6664 ; there is nothing H369 froward H6617 or perverse H6141 in them.
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9. विचारशील जन के लिये वे सब साफ़ है और ज्ञानी जन के लिये सब दोष रहित है।
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9. They are all H3605 plain H5228 to him that understandeth H995 , and right H3477 to them that find H4672 knowledge H1847 .
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10. चाँदी नहीं बल्कि तू मेरी शिक्षा ग्रहण कर उत्तम स्वर्ग नहीं बल्कि तू ज्ञान ले।
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10. Receive H3947 my instruction H4148 , and not H408 silver H3701 ; and knowledge H1847 rather than choice gold H4480 H977 H2742 .
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11. सुबुद्धि, रत्नों, मणि माणिकों से अधिक मूल्यवान है। तेरी ऐसी मनचाही कोई वस्तु जिससे उसकी तुलना हो।”
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11. For H3588 wisdom H2451 is better H2896 than rubies H4480 H6443 ; and all H3605 the things that may be desired H2656 are not H3808 to be compared H7737 to it.
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12. “मैं सुबुद्धि, विवेक के संग रहती हूँ, मैं ज्ञान रखती हूँ, और भले—बुरे का भेद जानती हूँ।
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12. I H589 wisdom H2451 dwell H7931 with prudence H6195 , and find out H4672 knowledge H1847 of witty inventions H4209 .
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13. यहोवा का डरना, पाप से घृणा करना है। गर्व और अहंकार, कुटिल व्यवहार और पतनोन्मुख बातों से मैं घृणा करती हूँ।
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13. The fear H3374 of the LORD H3068 is to hate H8130 evil H7451 : pride H1344 , and arrogance H1347 , and the evil H7451 way H1870 , and the froward H8419 mouth H6310 , do I hate H8130 .
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14. मेरे परामर्श और न्याय उचित होते हैं। मेरे पास समझ—बूझ और सामर्थ्य है।
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14. Counsel H6098 is mine , and sound wisdom H8454 : I H589 am understanding H998 ; I have strength H1369 .
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15. मेरे ही साहारे राजा राज्य करते हैं, और शासक नियम रचते हैं, जो न्याय पूर्ण है।
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15. By me kings H4428 reign H4427 , and princes H7336 decree H2710 justice H6664 .
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16. मेरी ही सहायता से धरती के सब महानुभाव शासक राज चलाते हैं।
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16. By me princes H8269 rule H8323 , and nobles H5081 , even all H3605 the judges H8199 of the earth H776 .
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17. जो मुझसे प्रेम करते हैं, मैं भी उन्हें प्रेम करतीहूँ, मुझे जो खोजते हैं, मुझको पा लेते हैं।
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17. I H589 love H157 them that love H157 me ; and those that seek me early H7836 shall find H4672 me.
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18. सम्पत्तियाँ और आदर मेरे साथ हैं। मैं खरी सम्पत्ति और यश देती हूँ।
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18. Riches H6239 and honor H3519 are with H854 me; yea , durable H6276 riches H1952 and righteousness H6666 .
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19. मेरा फल स्वर्ण से उत्तम है। मैं जो उपजाती हूँ, वह शुद्ध चाँदी से अधिक है।
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19. My fruit H6529 is better H2896 than gold H4480 H2742 , yea , than fine gold H4480 H6337 ; and my revenue H8393 than choice H977 silver H4480 H3701 .
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20. मैं न्याय के मार्ग के सहारे नेकी की राह पर चलती रहती हूँ।
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20. I lead H1980 in the way H734 of righteousness H6666 , in the midst H8432 of the paths H5410 of judgment H4941 :
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21. मुझसे जो प्रेम करते उन्हें मैं धन देती हूँ, और उनके भण्डार भर देती हूँ।
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21. That I may cause those that love H157 me to inherit H5157 substance H3426 ; and I will fill H4390 their treasures H214 .
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22. “यहोवा ने मुझे अपनी रचना के प्रथम अपने पुरातन कर्मो से पहले ही रचा है।
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22. The LORD H3068 possessed H7069 me in the beginning H7225 of his way H1870 , before H6924 his works H4659 of old H4480 H227 .
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23. मेरी रचना सनातन काल से हुई। आदि से, जगत की रचना के पहले से हुई।
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23. I was set up H5258 from everlasting H4480 H5769 , from the beginning H4480 H7218 , or ever H4480 H6924 the earth H776 was.
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24. जब सागर नहीं थे, जब जल से लबालब सोते नहीं थे, मुझे जन्म दिया गया।
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24. When there were no H369 depths H8415 , I was brought forth H2342 ; when there were no H369 fountains H4599 abounding H3513 with water H4325 .
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25. मुझे पर्वतों—पहाड़ियों की स्थापना से पहले ही जन्म दिया गया।
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25. Before H2962 the mountains H2022 were settled H2883 , before H6440 the hills H1389 was I brought forth H2343 :
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26. धरती की रचना, या उसके खेत अथवा जब धरती के धूल कण रचे गये।
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26. While as yet H5704 he had not H3808 made H6213 the earth H776 , nor the fields H2351 , nor the highest part H7218 of the dust H6083 of the world H8398 .
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27. मेरा अस्तित्व उससे भी पहले वहाँ था। जब उसने आकाश का वितान ताना था और उसने सागर के दूसरे छोर पर क्षितिज को रेखांकित किया था।
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27. When he prepared H3559 the heavens H8064 , I H589 was there H8033 : when he set H2710 a compass H2329 upon H5921 the face H6440 of the depth H8415 :
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28. उसने जब आकाश में सघन मेघ टिकाये थे, और गहन सागर के स्रोत निर्धारित किये,
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28. When he established H553 the clouds H7834 above H4480 H4605 : when he strengthened H5810 the fountains H5869 of the deep H8415 :
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29. उसने समुद्र की सीमा बांधी थी जिससे जल उसकी आज्ञा कभी न लाँघे, धरती की नीवों का सूत्रपात उसने किया, तब मैं उसके साथ कुशल शिल्पी सी थी।
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29. When he gave H7760 to the sea H3220 his decree H2706 , that the waters H4325 should not H3808 pass H5674 his commandment H6310 : when he appointed H2710 the foundations H4146 of the earth H776 :
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30. मैं दिन—प्रतिदिन आनन्द से परिपूर्ण होती चली गयी। उसके सामने सदा आनन्द मनाती।
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30. Then I was H1961 by H681 him, as one brought up H525 with him : and I was H1961 daily H3117 H3117 his delight H8191 , rejoicing H7832 always H3605 H6256 before H6440 him;
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31. उसकी पूरी दुनिया से मैं आनन्दित थी। मेरी खुशी समूची मानवता थी।
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31. Rejoicing H7832 in the habitable part H8398 of his earth H776 ; and my delights H8191 were with H854 the sons H1121 of men H120 .
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32. “तो अब, मेरे पुत्रों, मेरी बात सुनो। वो धन्य है! जो जन मेरी राह पर चलते हैं।
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32. Now H6258 therefore hearken H8085 unto me , O ye children H1121 : for blessed H835 are they that keep H8104 my ways H1870 .
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33. मेरे उपदेश सुनो और बुद्धिमान बनो। इनकी उपेक्षा मत करो।
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33. Hear H8085 instruction H4148 , and be wise H2449 , and refuse H6544 it not H408 .
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34. वही जन धन्य है, जो मेरी बात सुनता और रोज मेरे द्वारों पर दृष्टि लगाये रहता एवं मेरी ड्योढ़ी पर बाट जोहता रहता है।
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34. Blessed H835 is the man H120 that heareth H8085 me, watching H8245 daily H3117 H3117 at H5921 my gates H1817 , waiting H8104 at the posts H4201 of my doors H6607 .
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35. क्योंकि जो मुझको पा लेता वही जीवन पाता और वह यहोवा का अनुग्रह पाता है।
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35. For H3588 whoso findeth H4672 me findeth H4672 life H2416 , and shall obtain H6329 favor H7522 of the LORD H4480 H3068 .
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36. किन्तु जो मुझको, पाने में चूकता, वह तो अपनी ही हानि करता है। मुझसे जो भी जन सतत बैर रखते हैं, वे जन तो मृत्यु के प्यारे बन जाते हैं!” PE
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36. But he that sinneth against H2398 me wrongeth H2554 his own soul H5315 : all H3605 they that hate H8130 me love H157 death H4194 .
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